India Need support- covid-19 Donate Now

India Need support- covid-19 Donate Now
Kuber Singh Bisht A/c # 00881610066900 IFSC :HDFC0000088 , HDFC BANK

Tuesday, March 10, 2020

उत्तराखंड के गाँधी " जसवंत सिंह बिष्ट "तिमली"


जसवंत सिंह बिष्ट :

      आज की कहानी एक ऐसे नेता की जो सही माने में उत्तरांचल के गाँधी थे
                 ( ट्रक के टूल बॉक्स में सफर करने वाला विधायक )

 गाथा एक गांधीवादी निर्धन के विधायक बनने की

उत्तराखण्ड के गांधी कहलाने वाले प्रखर समाजवादी नेता, प्रमुख राज्य आंदोलनकारी एवं पूर्व विधायक स्व. जसवंत सिंह बिष्ट , उनका जन्म अविभाजित उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले की रानीखेत तहसील की बिचला चौकोट पट्टी में स्याल्दे के निकट तिमली गांव में जनवरी 1929 में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता। उनकी सादगी और ईमानदारी के चर्चे आज भी लोग याद करते हैं। जसवंत सिंह बिष्ट 1944 में ग्वालियर में मजदूर यूनियन में शामिल हुए। जहां वे पहली बार देश के अग्रणी समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के संपर्क में आए। वहां से गांव लौटकर उन्होंने सामाजिक कार्यों में भाग लेना शुरू किया और 1955 में वन पंचायत के सरपंच बने। फिर 1962 से 76 तक कनिष्ठ ब्लॉक प्रमुख रहे। इसी बीच उन्होंने 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से पहली बार रानीखेत उत्तरी क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लड़ा और हार गए। इसके बाद 1972 में ब्लॉक प्रमुख बने। वे दशकों से पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग करती रही पर्वतीय जनता के उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहले प्रतिनिधि के रूप में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के टिकट पर रानीखेत विधानसभा क्षेत्र से 1980 में पहली बार लखनऊ पहुंचे। इसके बाद रानीखेत से ही 1989 से 91 के बीच दोबारा विधायक रहे। वे सचमुच में पर्वतीय लोक-जीवन के सच्चे प्रतिनिधि थे।

थोड़ा पृष्ठभूमि में चलते हैं

देश में आपातकाल की समाप्ति के बाद 1977 में आई जनता पार्टी की सरकार के असफल होने पर देश की 7वीं लोकसभा के लिए जनवरी,1980 में चुनाव हो रहे थे। माहौल इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के पक्ष में स्पष्ट दिखाई दे रहा था। लोकसभा चुनाव की उसी सरगर्मी के बीच एक दिन सुबह-सबेरे जिले के प्रखर समाजवादी नेता जसवंत सिंह बिष्ट हमारे घर पधारे। यों तो वे प्राय: आते रहते थे लेकिन आज इतनी सुबह वे पहली बार आये थे। कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि वे तकनीकी रूप से तो जगजीवन राम की दलित मजदूर किसान पार्टी में हैं लेकिन चुनाव प्रचार वे निर्दलीय हो चुके अपने जिलाध्यक्ष के चुनाव निशान हवाई जहाज का कर रहे हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया और मधु लिमये जैसे समाजवादी नेताओं के साथी की इस दशा पर मुझे अफसोस हुआ। मैं तब अलग पर्वतीय राज्य की मांग को लेकर गठित उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का जिला उपाध्यक्ष था। मैंने उनसे कहा, "इन चुनावों में इंदिरा गांधी प्रबल बहुमत से अपनी चौथी पारी की शुरुआत करने जा रही हैं और उत्तर प्रदेश सहित अनेक राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने जा रहा है। वे ऐसे राज्यों की सरकार भंग कर वहां मई-जून में विधानसभा चुनाव करायेंगी। यदि वे (बिष्ट जी) उत्तराखण्ड क्रान्ति दल में शामिल हो जाते हैं तो सम्भावित विधानसभा चुनाव जीतकर पृथक राज्य की मांग राज्य विधानसभा में मजबूती के साथ उठाई जा सकेगी।"

 विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं, जेब में फूटी कौड़ी तक नहीं

आगे चलकर वही हुआ जो मैंने बिष्ट जी से कहा था। इंदिरा गांधी की धुंआधार वापसी हुई। इस बीच मैंने चुनावोपरान्त फरवरी में बसंत पंचमी के दिन मुनि की रेती (ऋषिकेश) में आयोजित पार्टी की समीक्षा बैठक में जसवंत सिंह बिष्ट जी को उत्तराखण्ड क्रान्ति दल की सदस्यता दिलाई। फिर मई 1980 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जबरदस्त धनबल और बाहुबल को मात दी।

 जसवत सिंह बिष्ट जी के इस चुनाव का नामांकन करने से एक दिन पहले की घटना पर कोई बहुत मुश्किल से ही यकीन करेगा लेकिन स्व. बिष्ट जी को जानने वालों के लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं। हुआ यह कि पर्चा दाखिल करने 120 किमी. दूर अल्मोड़ा जाने से पहले उनके पास गांव की एक दलित महिला ने आकर कहा कि उसके चौथी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे से स्कूल से गरीब बच्चों को दी जाने वाली दो पुस्तकें खो गई हैं और अध्यापकों का कहना है कि या तो पुस्तक जमा करो या उनकी कीमत। बिष्ट जी ने पूछा कि किताबों का मूल्य कितना है तो उस महिला ने बताया कि चार रुपये। बिष्ट जी ने अपनी जेब में रखे रुपयों में से चार उसे दे दिये और हाथ में पार्टी का बड़ा-सा झंडा कंधे में थैला लटका कर चल दिये।

गांव से नीचे उतरे तो वहां ग्राम देवता के मंदिर में जेब के शेष दो रुपये भी चढ़ा दिये। अब उनकी जेब पूरी तरह खाली थी। अल्मोड़ा कैसे जायेंगे और नामांकन का शुल्क कैसे जमा करेंगे कुछ नहीं मालूम। कुछ खेत नीचे उतरे तो गांव का एक किसान कंधे में हल टांगे और हाथो मे बैलो की रास पकड़े हुए मिले। उन्होंने पूछा कि नेताजी आज कहां का दौरा हो रहा है। बताया कि अल्मोड़ा जा रहा हूं चुनाव का पर्चा दाखिल करने। सहृदय किसान ने कहा, "यार नेता जी, कैसे आदमी हो, पहले घर पर पर बताते तो कोई सहायता करता, यहां मेरे पास बीड़ी-माचिस के लिए दो रुपये हैं, आप ले जाओ। मैं काम चला लूंगा। ना-ना करते हुए भी उस भले आदमी ने वे दो रुपये उनके हाथ में धर दिये। गांव के नीचे सड़क पर पहुंचे तो वहां एक छोटी-सी दुकान पर बैठे। दुकानदार ने भी वही उलाहना दिया कि पहले क्यों नहीं बताया। कल शाम ही रामनगर से वसूली को आये लाला को जो कुछ था, सब दे दिया। बातें हो ही रही थी कि दूसरे गांव के दो ग्राहकों ने कुछ सामान लिया। उनसे मिले 20 रुपये उस दूकानदार ने बिष्ट जी को थमा दिये। 
थोड़ी देर में देघाट से रामनगर जाने वाली बस आ पहुंची। उसमें बैठे तो कंडक्टर की सीट पर मौजूद बस मालिक के बेटे ने भी वही सवाल पूछा कि नेताजी कहां जाना हो रहा है। बताने पर उसने कंडक्टर को हांक लगाई, "अरे नेताजी हमारे साथ भतरौंजखान तक जायेंगे, इनका टिकट मत काटना।" 
      नेताजी का भतरौंजखान (हमारे गांव) में तिलक लगाकर श्रीमती जी ने स्वागत किया और उनके विजयी होने की शुभकामना के साथ दो सौ रुपये उनके लाख मना करने के बाद भी जबरदस्ती उनकी वास्कट की जेब में घुसा दिये। यहां घट्टी के घनश्याम वर्मा भी आकर मिल गये। फिर तीनों लोग पहुंचे रानीखेत। केमू बस अड्डे से बाजार की तरफ जाते हुए रास्ते में बिष्ट जी के हमउम्र खांटी कांग्रेसी नेता और विधान परिषद सदस्य (....) मिल गये। उन्होंने धीरे से मेरे कान में कहा, "जसवंत के पास पर्चे के भी पैसे हैं कि नहीं?" मैंने संकेत में उत्तर दिया। तब उन्होंने कहा कि शाम को वापसी में घर आना। आगे चलकर बुक सेलर धरम सिंह जी की दूकान पर पहुंचे तो वे नामांकन शुल्क और खर्चे लायक पैसों व एक अन्य मित्र के साथ तैयार मिले। हम पांचों बस से अल्मोड़ा पहुंचे और बिष्ट जी का नामांकन कराया।


 पूरे चुनाव के दौरान हमारे पास 64 मॉडल एक खटारा विलिस जीप और दो लाउडस्पीकर थे। जिसमें से एक रानीखेत स्थित चुनाव कार्यालय में बजता था और दूसरा हमारे साथ क्षेत्र में। न मालूम क्यों और कैसे ये दोनों साधन जब इनकी ज्यादा जरूरत होती तभी खराब हो जाते। यह रहस्य ड्राइवर मदनसिंह की समझ में तक नहीं आया। चुनाव के दौरान कार्यकर्ता ‘सुकि गलड़, फटी कोट, जसुका कैं दियो वोट (सूखे गालों और फटे हुए कोट वाले जसवंत चाचा को वोट दें) जैसे नारों के माध्यम से उनका प्रचार करते थे। रात होने पर गांव का जो भी घर खुला मिलता वहीं भोजन-शयन होता था और सुबह विदाई में वहां से सहर्ष जो भी मिल जाता उसे स्वीकार कर आगे बढ़ जाते। इस तरह 1980 का वह बेहद संघर्षपूर्ण चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी पूरन सिंह माहरा को 256 वोटों से पराजित करके जीता।

ट्रक के टूल बॉक्स में बैठ कर यात्रा

बिष्ट जी की सादगी और सीधे-साधेपन को समझने के लिए सिर्फ एक ही उदारण काफी हैएक बार उन्हें भिकियासैंण से रामनगर जाकर लखनऊ वाली ट्रेन पकड़नी थी लेकिन जाने का कोई साधन नहीं था। बाजार में किसी से मालूम हुआ कि लाला बहादुर मल का ट्रक रामनगर जाने वाला था। लाला के घर जाकर पता चला कि उसमें तो उनके परिवार की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे रामनगर जाने को तैयार बैठे हैं और उसमें जरा भी जगह बाकी नहीं है। इस पर बिष्ट जी बोले कि वे ऊपर टूल बॉक्स में बैठ जायेंगे। सचमुच उन्होंने 94 किमी. की वह यात्रा उसी टूल बॉक्स में बैठकर पूरी की जिसमें से 80 किमी. पूरी तरह पहाड़ी है।

1980 में पहली बार विधायक बनने के बाद जब गांव में ही रहने वाली उनकी पत्नी का अचानक स्वास्थ्य खराब हो गया तो जानवरों के चारे के लिए उन्होंने स्वयं दराती से घास काटकर उन्हें खिलाया-पिलाया। बेहद गरीबी में जीवनयापन करने वाले स्व. जसवंत सिंह बिष्ट धन व बाहुबल के इस अंधकारपूर्ण समय के नेताओं के लिए अनुकरणीय उदाहरण हैं।

सरलता और सादगी से परिपूर्ण निश्छल स्व. जसवत सिंह बिष्ट जी की स्मृति को नमन !

1 comment:

There was no place left to burn the dead bodies in the crematorium.

There was no place left to burn the dead bodies in the crematorium.

Popular Posts

Unordered List

Text Widget

Blog Archive

Contact Form

Name

Email *

Message *

Search This Blog

About Me

authorHello, my name is Jack Sparrow. I'm a 50 year old self-employed Pirate from the Caribbean.
Learn More →

Find Us On Facebook

Boat Head Phone

Your Ad Spot
Welcome

Categories

Breaking

Sponsor

test
Place Your advisertisement Here

Video Of Day

Government Jobs

Facebook

Comments

Responsive Ads Here

Recent

Video Of Day

Banking Jobs